Sadhana Shahi

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लेखनी कहानी -31-Mar-2024

दिनांक- 31,03,2024 दिवस- रविवार प्रदत विषय- कर्मों का भोग निश्चित है (कहानी) प्रतियोगिता हेतु

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कर्मों का भोग निश्चित है। आज नहीं तो कल हमें अपने कर्मों का फल भुगतना ही होगा इससे न कोई बचा है और न बचेगा।

अरुंधति और दिग्विजय बड़े ही कर्तव्य परायण, ज्ञानशील, विवेकवान और धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। वो कभी भूलवश भी किसी को, किसी भी प्रकार से आहत नहीं करते थे।

उनके यहाँ एक ज्ञानू नाम का नौकर काम करता था वह भी बहुत परिश्रमी, चरित्रवान, कर्मठ और ज़िम्मेदार था। अरुंधति आऔर दिग्विजय कभी भी उसके ऊपर क्रोधित नहीं होते थे।

अरुंधति की एक नन्ही सी बालिका थी बुलबुल जो पूरे घर की बड़ी ही लाडली थी। उसके कहकहों से घर हमेशा स्वर्ग बना रहता था। ज्ञानू भी अरुंधति को दिलो जान से चाहता था समय बीतता गया जिस प्रकार कली फूल में परिवर्तित हो जाती है उसी प्रकार नन्हीं सी बुलबुल बालिका से किशोरी के रूप में तब्दील हुई।अरुंधति और उसके पति दिग्विजय ने अपनी इकलौती बिटिया के लिए सुंदर घर-वर देखकर विवाह किया और बालिका खुशी-खुशी अपने पिता के घर से पति के घर विदा हो गई। विवाह के पश्चात जब वह पगफेरी के लिए अपने पति के साथ अपने माता-पिता के घर आई तब ज्ञानू ने दोनों का बड़ा ही भव्य स्वागत किया। वह बिटिया को देखकर बहुत ख़ुश था। रात को सब लोग खाना खाकर सोए लेकिन मोहन बाबू,(दामाद) को नींद नहीं आ रही थी तभी उन्होंने देखा उनके पलंग के ऊपर ही बड़े-बड़े संदूक रखे हुए हैं। उनके मन में कौतूहल जगा, आख़िर बक्सों में क्या रखा है? यह जानने हेतु मोहन बाबू ने संदूक को उतारने की कोशिश की। संदूक उतारने में अचानक उनके हाथ से छूट गया और वह बुलबुल के ऊपर गिर गया। जिससे बुलबुल की तत्काल मृत्यु हो गई। अब मोहन बाबू ख़ुद को बचाने का उपाय सोचने लगे। सुबह में लोगों को क्या ज़वाब दूंँगा। मैं चाहे जितनी सफ़ाई दे लूंँ यह गलती से हुआ है लेकिन कोई भी मुझ पर विश्वास नहीं करेगा। वह उपाय सोचने लगे कि यह पाप वह किसके सर मढ़ें। इसी चिंता में उन्हें पूरी रात नींद नहीं आई। सुबह-सुबह ज्ञानू कमरे में बिटिया को सुबह-सुबह की राम-राम कहने के लिए प्रवेश किया तो देखा बिटिया कोई भी ज़वाब नहीं दे रही है जब उसने उसे हिलाया तब उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। वह चीख पड़ा उसकी चीख सुनकर घर के सारे लोग और दामाद जी भी दौड़कर आ गये और सब लोग पूछने लगे ज्ञानू तुमने यह क्या कर दिया? यह तुमने किस जन्म का बदला लिया है।

ज्ञानू कहता रहा मालिक- मालकिन मैंने कुछ भी नहीं किया। मैं आया तो गुड़िया मरी हुई थी। मालिक- मालकिन को भी यह बिल्कुल विश्वास नहीं हो रहा था कि ज्ञानू ऐसा कर सकता है लेकिन घर में अरुंधति , दिग्विजय के अतिरिक्त मोहन बाबू और ज्ञानू थे। यद्यपि कि अरुंधति और दिग्विजय को ज्ञानू पर विश्वास नहीं हो रहा था किंतु और कौन ऐसा कर सकता है?अरुंधति और दिग्विजय ज्ञानू को अपने बेटे की भांँति बहुत चाहते थे। अतः उनके अंदर उसे सज़ा देने की हिम्मत नहीं थी। लेकिन उन लोगों ने उसे अपने घर से यह कहकर निकाल दिया कि अब कभी जीवन में हमें अपना मनहूस चेहरा नहीं दिखाना।

ज्ञानू दुखी मन से घर क्या! गांँव, शहर जिला से ही निकल गया और बहुत दूर अनजान ज़गह पर चला गया।

वहांँ जाकर वह एक फैक्ट्री में काम करने लगा। इधर मोहन बाबू भी अपने गांँव चले गये समय के साथ-साथ सबकी ज़िंदगी सामान्य हो गई। सब जीने -खाने लगे।

मोहन बाबू का दो आलीशान होटल चलता था। धन- संपत्ति, मान- मर्यादा , इज़्ज़त, शोहरत किसी भी चीज़ की कोई कमी नहीं थी।

एक दिन रसोईया तंदूर पर कुछ कर रहा था तभी पता नहीं क्या हुआ वह तंदूर के अंदर गिर गया। जब तक लोगों ने उसे देखा और निकाला तब तक वह पूरी तरह जल चुका था। मोहन बाबू आनन-फानन में अस्पताल ले गए।लेकिन उसकी कंडीशन इतनी ख़राब हो गई थी कि अस्पताल में जाने तथा अच्छी चिकित्सा देने के पश्चात भी मनवांछित सुधार नहीं हुआ और वह कोमा में चला गया। और पूरे एक वर्ष वह कोमा में ही रहा।

कोमा में जाने के पश्चात मोहन बाबू को रसोइये की हत्या करने की कोशिश में गिरफ़्तार कर लिया गया। मोहन बाबू अपनी सफ़ाई देते रहे लेकिन कोई भी ठोस प्रमाण न मिलने के कारण मोहन बाबू को रसोईये की हत्या करने की कोशिश के आरोप में जेल में डाल दिया गया।

जेल में जाने के पश्चात मोहन बाबू विचार करने लगे न जाने किस पाप की सज़ा यह मुझे मिली है।

तभी उन्हें ज्ञानू याद आया कि उसने भी पाप नहीं किया था लेकिन मेरे पाप की सज़ा उसे मिली और उसे घर से निकाल दिया गया, वह बेघर हो गया। जहांँ पर वह एक बेटे की तरह प्यार पाता था वहांँ पर वह मेरे कारण गुनहगार साबित हो गया।

ख़ैर जो हो गया उसे तो नहीं बदल सकते लेकिन जो हाथ में है उसे अवश्य परिवर्तित कर सकते हैं। इस विचार से जेल में रहते हुए भी मोहन बाबू रसोईये का इलाज़ भली-भांँति कराते रहे। पूरे एक वर्ष बाद रसोईया कोमा से बाहर आया इस दौरान उसके इलाज़ में तथा मोहन बाबू के जेल में रहने के कारण उनका सारा बिज़नेस चौपट हो गया, वो सड़क पर आ गए। किंतु उन्होंने रसोईये का ईलाज बंद नहीं करवाया। कोमा से बाहर आने के बाद धीरे-धीरे उसकी तबीयत में सुधार होने लगा। जब रसोईया ख़तरे के बाहर आ गया तब पुलिस उससे पूछताछ के लिए आई और पूछताछ के दौरान पता चला की रसोइये के तंदूर में गिरने में मोहन बाबू की कोई भूमिका नहीं थी। यह एकमात्र दुर्घटना था। रसोइया स्वयं की ग़लती से तंदूर में गिर गया था।

पुलिस वाले ने जब रसोइये को बताया कि तुम्हारे हत्या की कोशिश के आरोप में मोहन बाबू जेल काट रहे हैं। तब रसोईया फूट-फूट कर रोने लगा और उसने पुलिस से मोहन बाबू को जेल से रिहा करने तथा उनकी सज़ा समाप्त करने की फरियाद किया।

रसोईये के बयान के फलस्वरुप मोहन बाबू को बाईज्जत जेल से बरी कर दिया गया तथा उनकी सज़ा माफ़ हो गई। जेल से बाहर आने के पश्चात पुनः मोहन बाबू तथा रसोईया एक नए सिरे से बिजनेस को खड़ा किये और दोनों मालिक और नौकर खुशी-खुशी अपनी ज़िंदगी को व्यतीत करने लगे।

और इस तरह मोहन बाबू कर्तव्यपरायणता, नैतिकता, मानवता की भट्टी में ख़ुद को तपाकर खरा सोना बना लिए।

अपने पाप कर्म के फल स्वरुप उन्हें जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा किंतु मानवता, नैतिकता की तिलांजलि न देने के कारण उनका खोया हुआ मान- सम्मान पुनः वापस मिल गया।

अतः हमें चाहिए कि यदि हमसे भूलवश कोई ग़लती हो गई है तो उस ग़लती को दूसरे के सर मढ़ने की वजाय उसमें सुधार करने की कोशिश करें।

क्योंकि, कर्मों का भोग निश्चित है वह चाहे जाने में हुआ हो या अनजाने में हमें उसका फल भुगतना ही होता है। अतः हमें अपने बुरे कर्मों के परिणाम को कम करने के लिए सत्कर्म करना चाहिए न कि थक हार कर बैठ जाना चाहिए।

साधना शाही, वाराणसी

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7 Comments

Gunjan Kamal

11-Apr-2024 03:52 PM

👌🏻👏🏻

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Varsha_Upadhyay

10-Apr-2024 11:46 PM

Nice

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बहुत ही बढ़िया कहानी

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